दोस्तों, ये कहानी शुरू होती है, आज से लगभग 125 साल पूर्व, जापान के, एक छोटे से किसान के घर में जन्मे एक बच्चे की, जिसका नाम उसके माता पिता ने बड़े प्यार से, कोनोसुके रखा|
कोनोसुके जब मात्र नौ साल का ही हुआ था की, उसके पिता को, आर्थिक कठिनाईयों के कारण, गाँव की सारी जमीन बेच देनी पड़ी और अपना गाँव, अपना घर तक, छोड़ देना पड़ा था|
गाँव में सब कुछ गवां चुके कोनोसुके के पिता, परिवार सहित, शहर में आ गए और परिवार के पालन पोषण के लिए, कुछ छोटे मोटे काम करने लगे|
अपने पिता की मदद, और परिवार का खर्चा चलाने के लिए, नौ साल के हो चुके कोनोसुके को भी, अपनी पढ़ाई छोड़कर एक दुकान पर, काम करना पड़ा|
यहाँ कोनोसुके, सुबह होते ही सूर्य की पहली किरण के साथ, बिस्तर छोड़ देता| और फिर दुकान में अच्छे से सफाई का काम करता और साथ ही साथ, दुकान के कुछ दूसरे, छोटे मोटे काम ख़त्म करने के बाद, अपने मालिक के बच्चों की देखभाल और सेवा के काम में जुट जाया करता|
कुछ महीनो इसी तरह बीत गए लेकिन.. कुछ ही महीनो के भीतर, उस दुकान का कारोबार, कुछ मंदा होने के पश्चात, उस दुकान के मालिक ने कोनोसुके को, नौकरी से हटा दिया और इसके पश्चात कोनोसुके को, एक साईकिल बेचने वाली दुकान पर नौकरी मिल गई|
उस समय साईकिल एक लक्ज़री आइटम मानी जाती थी और यूनाइटेड किंगडम से इम्पोर्ट की जाती थी|
कोनोसुके ने साईकिल की दुकान पर काम किया
इस शॉप पर साईकिल बेचने के साथ साथ, कुछ मेटल वर्क का काम भी होता था और वहां कोनोसुके को, अन्य कामों के साथ साथ लेथ और अन्य टूल्स के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला|
कोनोसुके ने साईकिल की दुकान पर, पांच सालों तक काम किया और पंद्रह साल की आयु में, अब वह कुछ नया खोजने में लग गया जहाँ काम के साथ साथ, वो और भी कुछ नया सीख सके|
आने वाले समय में बिजली की बढ़ती संभावनाओं को देखकर, उसे महसूस हुआ की उसे इसी फील्ड में, कोई अच्छी सी नौकरी खोजनी चाहिए|
इसी दौरान, कोनोसुके ने एक दिन, Osaka Electric Light Company का विज्ञापन देखा और विज्ञापन में कम्पनी ने, कुछ नए कर्मचारियों की भर्ती की बात की थी और कोनोसुके ने उस कम्पनी में नौकरी के लिए अप्लाई किया और उसे वहां पर नौकरी भी मिल गई|
वहां काम के दौरान हर रोज उसे काफी कुछ सीखने को भी मिलने लगा| धीरे धीरे समय गुजर रहा था|
समय गुजरने के साथ कोनोसुके, जहाँ नौकरी करते हुए, बहुत कुछ सीख रहा था, वहीँ दूसरी ओर वह, अपने खाली समय में इलेक्ट्रिसिटी से सम्बंधित, बहुत सी पुस्तकें पढ़ा करता और साथ ही साथ कुछ, छोटे छोटे नए प्रयोग भी किया करता था|
20 वर्ष की आयु में, उसका विवाह हो गया और थोड़ी सी जिम्मेदारी भी बढ़ गई| 22 वर्ष की उम्र तक वो अपनी काबिलियत से, कम्पनी में टेक्निकल इंस्पेक्टर बन गया जो उस समय बहुत बड़ी पोजीशन मानी जाती थी|
इसी बीच कोनोसुके ने, अपने अतिरिक्त समय का उपयोग करते हुए, एक नए सुधार के साथ, इलेक्ट्रिकल सर्किट बनाया और अपने बॉस को दिखाया लेकिन उसके बॉस को, उसका वो आईडिया पसंद नहीं आया|
और उसके बॉस ने उसे यह कहकर रिजेक्ट कर दिया की – ये मार्केट में नहीं चल पायेगा लेकिन कोनोसुके को अपने उस इलेक्ट्रिकल सॉकेट पर, पूरा भरोसा था|
उसे विश्वास था की, ये मार्केट में जरूर चलेगा और अपने विश्वास के दम पर उसने नौकरी छोड़ कर, अपना खुद का काम करने की ठान ली और उसके लिए उसने, अपने कुछ दोस्तों से बातचीत भी की|
लेकिन कोनोसुके के सभी दोस्तों और जानने वालों ने उससे कहा की, अपनी लगी लगाई इतनी अच्छी खासी जॉब को छोड़कर, स्वयं का काम करने का विचार, उसका एक पागलपन है और वो भी एक ऐसे उत्पाद की खातिर, जिसको की उसके अनुभवी बॉस ने, पहले ही मना कर दिया हो|
मार्केट में तुम्हारे उत्पाद के चलने या न चलने की भी, कोई गारंटी नहीं है और ऊपर से तुम, ज्यादा शिक्षित भी नहीं ठहरे, न ही तुम्हारे पास बिजनेस करने कोई एक्सपीरियंस ही है|
तुम्हारा सफल होना तक़रीबन असंभव सा लगता है लेकिन कोनोसुके को स्वयं पर अडिग विश्वास था और अपने उस उत्पाद पर भी उसे पूरा भरोसा था|
अब उसने एक बड़ा निर्णय ले लिया, उसने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने द्वारा जमा किये हुए थोड़े से पैसों के साथ, कुछ बेसिक टूल खरीद लिए|
और अपने साथ काम करने वाले में दो छोटे को-वर्कर अपने छोटे भाई और अपनी पत्नी के साथ मिलकर, अपने घर पर स्थापित किया, अपनी स्वयं की फैक्ट्री|
एक अत्यंत ही छोटी फैक्ट्री के साथ, अपने काम की शुरुवात करने वाले कोनोसुके अब सर्किट बनाने लगा और स्वयं ही बाज़ार जाकर, लाइट सर्किट बेचने की कोशिश करने लगा|
लेकिन दुर्भाग्यवश, कोनोसुके के लाइट सर्किट को, प्रत्येक स्थान पर इंकार कर दिया जाता और ऐसे ही कई महीने, यूँ ही निकल गए| उसे मात्र, थोड़े बहुत छोटे छोटे आर्डर मिले जिनसे जिंदगी का गुजारा करना, बेहद ही कठिन हो गया और परिस्थितियाँ बेहद ही ख़राब|
कर्ज भी लेना पड़ा,
बुरे हालातों को देखते हुए, उसके दोनों सहयोगियों ने बी, उसका साथ छोड़ दिया उस समय और आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब हो गई थी की, उसे अपने घर का खर्च चलाने के लिए, अपने घर का सामान तक, बेचना पड़ गया था|
और ऊपर से, कुछ कर्ज भी लेना पड़ा, अपने सपने को पूरा करने के लिए|
चारों दिशाओं से केवल कर्ज और रिजेक्शन ही दिखाई देने लगे थे| हर दिन वो, एक नया प्रयत्न करता, अपने द्वारा बनाये गए सर्किट को बेचने की और हर दिन वो असफल हो जाता|
और कई बार उसे यहाँ तक लगने लगा था की, अपने सपने को उसे, अब छोड़ देना चाहिए और उसे पुनः, अपनी पूर्व की जॉब, शुरू कर लेनी चाहिए|
परन्तु कोनोसुके का जो विश्वास था वो बेहद ही मजबूत था, अपने सपने को लेकर| ये उसका विश्वास ही था जो उसे, फिर से हिम्मत और जोश प्रदान करता और वो फिर से निकल जाता एक और प्रयत्न के वास्ते और फिर असफल होकर लौट आता|
हालात बेहद ही बिगड़ चुके थे, लगभग दिवालिया हो चुके उस, युवक के पास, अब नौकरी ही एकमात्र विकल्प था, अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने का|
और इन संघर्ष के दिनों में, यही सलाह उसके दोस्तों की भी थी, की उसे अपनी जिद छोड़कर, नौकरी पर पुनः वापस आ जाना चाहिए चाहिए लेकिन उसका विश्वास, अपने प्रोडक्ट पर इतना अटल था की वो हार मानने को तैयार ही नहीं था|
फिर अचानक एक दिन, उसकी कम्पनी को 1000 की मात्रा में पहला, बड़ा आर्डर मिल गया| उसी दिन के पश्चात, उसके बिजनेस ने एक रफ़्तार पकड़ ली|फिर गरीब लड़के यानि कोनोसुके की कम्पनी, तेज़ी से उन्नति करने लगी और फिर उसने कभी, पीछे मुड़कर न हीं देखा|
और आज, उसी लड़के के द्वारा बनाई गई कम्पनी में 250000 ढाई लाख से भी अधिक, कर्मचारी काम करते हैं और कम्पनी का सालाना टर्नओवर लगभ
ग 70 B $ सत्तर बिलियन डॉलर है|
और इतनी महान उपलब्धि, उस लड़के ने हासिल किया जो न तो अधिक शिक्षित ही था और न ही जिसके पास बहुत पैसा था और न ही, कोई विशेष बड़ी सपोर्ट|
उसके पास अगर कुछ था, तो वो था उसका विश्वास, जो एकदम अटल था|
पैनासोनिक की स्थापना
और दोस्तों, उस शक्श की बनाई उस कम्पनी का नाम है – पैनासोनिक Panasonic, जिसके प्रोडक्ट्स आज गुणवत्ता Quality की पहचान हैं|
दोस्तों, कोनोसुके मात्सुशिता Konosuke Matsushita का देहान्त, चौरान्बे वर्ष की उम्र में हो गया लेकिन पैनासोनिक आज पूरे विश्व में फ़ैल गया है और जिसकी नींव थी, केवल एक व्यक्ति का विश्वास