वैदिक ज्योतिष में शत्रु भाव ही छठे भाव के रूप में लोकप्रिय है। आपकी कुंडली के अन्य भागों की तरह ही यह भी बड़ा महत्व रखता है और यह अद्वितीय भी है। आमतौर पर इस भाव का संबंध आपके स्वास्थ्य और कल्याण से होता है। यही वजह है कि इसे रोग स्थान भी कहा जाता है।
छठा भाव ( Sixth House) त्रिक भावों में से एक भाव है. 6,8 व 12 भाव को त्रिक भावों के नाम से जाना जाता है. तथा त्रिक भावों को शुभ भाव नहीं कहा जाता है. इन भावों का संबन्ध जिन भी ग्रहों व भावेशों से बनता है उनकी शुभता में कमी आती है.
छठे भाव का कारक मंगल ग्रह है. मंगल से इस भाव से शत्रु, शत्रुता, मुकदमेबाजी, अवरोध, चोट आदि देखे जाते है. शनि इस भाव से रोग, शोक, ऋण आदि प्रकट करता है. व बुध छठे भाव में भाई-बन्धु, मामा और चाचा का प्रतिनिधित्व करता है.
छठे भाव को रोग भाव (Deases House), ऋण (Loan House) व सेवा भाव (Service House) के नाम से भी जाना जाता है. व्यक्ति के शत्रु भी इसी भाव से देखे जाते है.
इसके अलावा छठा भाव अर्थ भाव ( दूसरा, छठा व दशम भाव) भी है. इस भाव पर गुरु की दृ्ष्टि व्यक्ति को जीवन में अर्थ की कमी नहीं होने देती. इस प्रकार इस भाव की भूमिका को आजीविका के क्षेत्र में कम नहीं समझना चाहिए.
एक अन्य मत के अनुसार इस भाव से एसे सभी कार्य जो अधिक मेहनत से पूरे होते है, कर्मचारी, सेवक आदि का विचार इस भाव से करना चाहिए. इस भाव में शुभ ग्रहों का एक साथ स्थित होना, व्यक्ति को सेवा कार्यो में सदभाव व स्नेह का भाव देता है.
षष्ठेश और सप्तमेश का परिवर्तन योग व्यक्ति को जीवन में उतार-चढाव देता है. उसके वैवाहिक जीवन के लिए यह योग शत्रु समान फल देता है. जिस प्रकार शत्रु व्यक्ति की जीवन में बाधाएं उत्पन्न करते रहते है, ठिक उसी प्रकार यह योग होने पर व्यक्ति का जीवन साथी वैवाहिक जीवन की खुशियों में परेशानियों का कारण बनता है.
छठा स्थान रोग, शत्रु, कर्ज एवं नौकरी का है। बहुत से लोग नौकरी के पीछे-पीछे फिरते हैं। कर्मचारी लोग स्कूटर, मकान के लिए ऋण चाहते हैं। यदि छठे भाव में प्रबल मंगल हो तो शत्रुहन्ता योग का निर्माण होता है।
ऐसे जातक के शत्रु उसके नाम से कांपते हैं तथा छठे घर में बलवान राहू हो तो ऐसा जातक अपने विरोधी की जमानत जब्त कराकर तबाह कर देता है।
यदि लग्नेश व षष्ठेश निर्बल हो तथा लग्नेश क्रूर ग्रहों के मध्य फंसा हो तो ऐसे जातक हत्या के शिकार हो जाते हैं।
परन्तु लग्नेश एवं गुरु के बलवान वाले जातक का शत्रु बाल भी बांका नहीं कर सकते। जिस व्यक्ति की कुंडली में छठे या अष्टम भाव में चंद्रमा-बुध के साथ बैठा हो तो ऐसे जातक की मृत्यु जहर से होती है।
जन्मपत्री के 6, 8, 12वें भाव में चन्द्रमा हो तो ऐसे जातकों पर पानी में डूबने का खतरा मंडराता रहता है।
छठे घर में राहु-शनि की युति हो या दृष्टि पड़ती हो तो शत्रु द्वारा तांत्रिक प्रयोग अवश्य होता है।
ईर्षालु गुप्त शत्रु तांत्रिक प्रयोग द्वारा ऐसे जातक को अवश्य कष्ट पहुंचाते हैं और शत्रु कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं।
यदि शुक्र छठे भाव में अशुभ स्थिति में हो तो रीढ़ की हड्डी में कमजोरी व पैर की पिंडलियों में दर्द रहता है। फास्ट फूड का संबंध राहु व शनि से है। सिगरेट, तम्बाकू एवं शराब का संबंध राहु से है। इनके सेवन से राहू खराब हो जाएगा और बीमारी शुरू।
इसके विपरीत यह ऋण का भाव भी है. आजीविका के कार्यो को पूर्ण करने के लिये तथा इसका विस्तार करने के लिये ऋण लेने की स्थिति आती ही रहती है. किसी व्यक्ति के लिये ऋण लेना सरल होगा या नहीं, इसका विचार करने के लिये इस भाव में अगर शुभ ग्रह स्थित हों तो ऋण लेने में बाधाएं आती है. अन्यथा यह सरलता से प्राप्त हो जाता है.
जब कुण्डली के छठे भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों तो व्यक्ति की आजीविका में बाधाएं देते है. इस योग के फलों को देखते समय इन अशुभ ग्रहों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव नहीं होना चाहिए. इस भाव में चन्द्र या शुक्र की स्थिति होने पर व्यक्ति अस्पताल या होटल से संबन्धित क्षेत्रों में आजीविका प्राप्त कर सफल होता है.
जब छठे भाव में हिंसक राशियां अर्थात (1,2,8,11 वीं राशि ) हों, तथा इस भाव में एक से अधिक पाप ग्रह एक-दूसरे से निकटतम अंशों पर स्थित हों तो व्यक्ति को नौकरी से निकाले जाने का योग बनता है.
च्छे दिन और बुरे दिन हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा होते हैं। जब समय ज्यादा भाग्यशाली नहीं होता है, तो कुंडली के छठे भाव में ही आंतरिक शक्ति देने की ताकत मौजूद होती है। इस ताकत की वजह से बाहरी दुनिया से लड़ने के लिए आप एक सुपरहीरो की तरह सामने आते हैं। यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि छठे भाव में ग्रहों के अनुकूल प्रभाव की वजह से आप रियल एवेंजर्स बन सकते हैं।
जब कुण्डली में छठा भाव, तीसरा भाव व नवम भाव बली हो तथा इन भावों से मंगल व शनि का संबन्ध होने पर व्यक्ति अपने पराक्रम के बल पर कानून के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है. इस भाव में शनि बली अवस्था में हों तो व्यक्ति को व्यापार के स्थान पर नौकरी करना अधिक पसन्द होता है.