कुंडली में पंचम भाव इमेजिनेशन, रोमांस और संतान से जुड़ा होता है। यह भाव आपके खुशियों का घर कहलाता है। इस भाव से जो खुशी मिलती है, वो अक्सर आपके रचनात्मक प्रयासों का प्रतिफल होती है।
कुंडली के 5वें घर को लॉटरी, गम्ब्लिंग, पजल्स , कार्ड, शेयर, सट्टेबाजी और स्टॉक एक्सचेंज जैसे अवसरों के लिए भी जाना जाता है।
पंचम भाव में कुंडली का त्रिकोण भाव होने से शुभ भाव माना जाता है। कुंडली के पंचम भाव से हमें संतान, बुद्धि व शिक्षा देवभक्ति की जानकारी प्राप्त होती है। पंचम भाव स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को संतान की ओर से सुख प्राप्त होता है। मंगल अग्नि की कारक ग्रह है। पंचम भाव का पेट से संबंध होता है।
पंचम भाव को बुद्धि स्थान कहा गया है। पंचम भाव से ही शिक्षा के सम्बन्ध में भी विचार किया जाता है तथा संतान के कारक भाव के रूप में भी पंचम भाव को स्थान दिया गया है. पंचम भाव ज्ञान का भाव है, ज्ञान जिससे जीवन की दिशा निर्देशित होती है .पंचम भाव से मन्त्र तथा नवम भाव से तप-समाधि आदि फलाफल भी देखा जाता है.
अगर आपके जीवन में अचानक लाभ या अचानक हानि हो रही है, तो इस स्थिति का भी आंकलन पंचम भाव से किया जाता है इन सबके अलावा, पंचम भाव इसलिए भी विशेष स्थान रखता है, क्योंकि इसी भाव से प्रेम की स्थिति का आंकलन किया जाता है,
कुंडली में पांचवें घर पिछले जन्म के कर्मों के बारे में भी बताता है। यह भाव पूर्व में अर्जित किये गये पुण्य और मेधावी कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है।
इसे भाग्य का घर भी कहा जाता है। इस भाव में विराजमान ग्रह दिखाते हैं, कि आपको लॉटरी जैसी चीजों से कितना धन मिलेगा।
मंगल को एक अशुभ ग्रह के रूप में जाना जाता है, और जब यह 5वें घर के साथ होता है, तो यह जातक के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव को दर्शाता है। ये व्यक्ति शांत रहने की प्रवृत्ति खो देते हैं और बेकार की बातों पर गुस्सा करने लगते हैं, जो अंततः उनकी रचनात्मकता और बुद्धि को प्रभावित करता है। पंचम भाव में मंगल की स्थिति भी जातक को लापरवाह, आक्रामक और अपमानजनक बनाती है। कभी-कभी जातकों के प्रेम संबंधों में गंभीर टकराव होते हैं और परिणामस्वरूप, वे अपने साथी को खो सकते हैं। मूल निवासी अक्सर अपनी आत्म-अभिव्यक्ति और आत्म-सम्मान को बढ़ावा देना बेकार समझते हैं। मंगल के प्रतिकूल प्रभाव से इनकी लव लाइफ प्रभावित होती है और दोनों पार्टनर एक दूसरे से दूरी बनाकर रखते हैं।
पंचम भाव स्थित मंगल के प्रभाव से जातक की तीव्र बुद्धि होती है। जातक को यश और कीर्ति प्राप्त होती है। पंचम भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक सेना विभाग, पुलिस विभाग, फाँरेस्टरी इंजीनियरिंग, मोटर ड्राईविंग, टेक्निकल संस्थान आदि विभागों में शिक्षा प्राप्त करता है। इन सब विभागों में कार्य करने के लिये अति ऊर्जा की आवश्यकता होती है व मंगल ग्रह ऊर्जा का कारक होने से पंचम स्थित मंगल के जातक में मंगल की ऊर्जा सम्मिलित होती है।
वह इन विभागों के शिक्षा क्षेत्र में अच्छी प्रगति करता है। ऐसा जातक बुद्धिमान होता है। वह दृढनिश्चय से अपना कार्य करता है। पंचम भाव में मंगल का स्थित होना संतान के लिये कष्टकारी योग माना जाता है। स्त्रियों की पत्रिका में पंचम भाव में मंगल होने से गर्भपात होने की संभावना बनी रहती है। मंगल पर अशुभ प्रभाव होने से जातक जिद्दी एवं व्याकूल होने वाला व धैयहीन होता है। पंचम भाव स्थि मंगल डाक्टर शिक्षा में पढ़ाई करनेवाले छात्रों के लिये अच्छा होता है।
पंचम भाव संतान से संबंधित होता है। यदि पंचम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तब जातक को उत्तम संख्या में संतान सुख प्राप्त होता है। जातक के बच्चे संस्कारी और अच्छे प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले होते हैं। पंचमेश पापी ग्रह से पीड़ित हो तब संतान उत्पत्ति में समस्या हो सकती है।
पंचम भाव पर जब पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती है इसके फलों में कमी आ जाती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसाार राहु और केतु को पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. माना जाता है कि जब पंचम भाव पर राहु या केतु की दृष्टि पड़ती है तो लव लाइफ में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे लोगों को प्रेम में सफलता पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. कभी- कभी असफलता का सामना करना पड़ता है.
पंचम भाव पर क्रूर ग्रह की दृष्टि
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि, मंगल और सूर्य को क्रूर ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. जब इन ग्रहों की दृष्टि कुंडली के पंचम भाव पड़ती है तो व्यक्ति को प्रेम संबंधों में बहुत अड़चनों का सामना करना पड़ता है. इन ग्रहों के कारण ब्रेकअप जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ता है. ये ग्रह लव मैरिज में भी बाधा देने का कार्य करते हैं.
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जन्म कुंडली में मंगल व्यक्ति के जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। पाप ग्रह होने के कारण यह जातक को नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करता है।
पंचम भाव में मंगल जातक को रचनात्मक, बुद्धिमान, प्यारा और रोमांटिक बनाता है लेकिन जातक को आत्मकेंद्रित, अपमानजनक और आक्रामक बनाने के लिए भी जिम्मेदार होता है।
समीकरण को संतुलित करने के लिए अपने कार्यों पर नियंत्रण रखना चाहिए और प्रेम संबंधों को लेकर सतर्क रहने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, मंगल आपको ज्ञान और धन भाग्य भी प्रदान करता है।
इस कड़ी में हम सबसे पहले बात करेंगे देवगुरु बृहस्पति के बारे में, ज्योतिष शास्त्र में देवगुरु बृहस्पति शुभ ग्रह माने जाते हैं। वहीं जब बृहस्पति देव किसी की कुंडली के पंचम भाव में बैठते हैं तो जातक शिक्षा के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। साथ ही बता दें की बृहस्पति ग्रह को उच्च शिक्षा का कारक ग्रह माना जाता है।
इसी तरह जब कुंडली के पंचम स्थान में कोई भी शुभ ग्रह बैठे होते हैं तो वह व्यक्ति की पढ़ाई-लिखाई में कीर्तिमान स्थापित करता है। ऐसे बच्चे बहुत होशियार होते हैं और उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं। अपनी शिक्षा में सफलता के बाद करियर में भी सक्सेस प्राप्त करते हैं।