कुंडली का चतुर्थ भाव जातक के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण भाव होता है क्योंकि यह भाव जातक की माँ से सम्बंधित भाव है जब व्यक्ति का जन्म होता है तो जन्म के बाद उसकी देखभाल ठीक तरह से माँ ही कर पाती है जिससे उस व्यक्ति का आगे का आने वाला जीवन अच्छा हो सके।
इस भाव, भावेश का शुभ प्रभाव में होना माँ कारक चंद्र बलवान होने से माँ का पूरी तरह से सुख और सहयोग जातक को मिलता है इसके आलावा चतुर्थ भाव से सुख, भूमि, मकान, पानी से सम्बंधित काम, मन, भावनाये, जनता और समाज में अपनी स्थिति आदि का विचार भी किया जाता है।
कुंडली के चतुर्थ भाव से किसी इंसान के घर ,परिवार का पता लगाया जाता है। कुंडली का चौथा भाव किसी व्यक्ति के घर का वातावरण और स्थिति बताता है ।
यदि चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह बैठा हो ऐसे व्यक्ति के घर का माहौल उस व्यक्ति के मन के अनुकूल होता है। और घरवालों से उसके संबंध भी मधुर होते हैं।
चौथा भाव किसी व्यक्ति की चल अचल संपत्ति, भवन, मकान और वाहन यानी कार, स्कूटर जैसी संपत्ति के बारे में भी जानकारी देता है ।
चतुर्थ भाव का कुंडली के अन्य भावों से अंतर्संबंध हो सकता है। यह हमारे निजी जीवन या अफेयर को दर्शाता है, साथ ही आपके छोटे भाई-बहनों का धन, संचार में वृद्धि, यात्रा करने की क्षमता, वस्त्र, फर्नीचर, घर के अंदर की कलात्मक वस्तुएँ, कार, ऑर्किटेक्चर की पढ़ाई, पेशेवर और वाणिज्यिक स्थान को भी दर्शाता है।
चौथा भाव अगर मजबूत हो और उसमें शुभ ग्रह बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति के पास उसका अपना मकान , बंगला, गाड़ी सब कुछ मौजूद होता है ।
चौथे भाव का स्वामी चंद्रमा होता है। और चंद्रमा किसी इंसान की मनःस्थिति को बताता है। और इसी कारण से कुंडली का चतुर्थ भाव किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति , उसकी भावनात्मक संतुष्टि को बताता है।
कुंडली के चौथे भाव में अगर चंद्रमा स्वयं बैठा हों तो ऐसा व्यक्ति मानसिक तौर पर अत्यधिक स्थिर होता है। और भावनात्मक तौर पर भी मजबूत होता है।
चतुर्थ भाव कुंडली का उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है।घर की स्थिति किस प्रकार की है यह सब चतुर्थ भाव ही बताता है इस भाव में शनि राहु केतु पाप ग्रहो का प्रभाव होने से जातक का घर पुराना होता है कही न कही ऐसे जातको के घर के आसपास जंगल, शमशान, कब्रस्थान जैसी जगह होती है क्योंकि शनि राहु इस तरह के स्थानों पर निवास करते है।
शुभ ग्रहो शुक्र बुध गुरु का सम्बन्ध चोथे भाव से उच्च स्तर का आलीशान और बड़े मकान का सुख देने वाला होता है।
मंगल भूमि, मकान सुख का कारक है मंगल का सम्बन्ध भी शुभ ग्रहो के साथ चोथे भाव से होने पर निश्चित ही आलीशान और बड़े घर का सुख मिलता है।
मन की भावनाएं उसी तरह की होंगी जिस तरह के ग्रहो का प्रभाव इस भाव पर पड़ेगा।
चोथे भाव में बेठे ग्रह अपनी पूर्ण 7वीं दृष्टि जातक के कर्म स्थान 10वे स्थान पर डालते है 10वे स्थान से रोजगार, प्रतिष्ठा का विचार किया जाता है जिससे उसका रोजगार प्रभावित होता है।
इसी तरह 10वे स्थान में बेठे ग्रह चोथे भाव पर अपनी पूर्ण 7वीं दृष्टि डालकर चोथे भाव और दशम भाव दोनों को प्रभावित करते है।दशम और चोथे भाव दोनों भावो में ग्रह बेठे होने से मंगल और शुभ ग्रहो का चतुर्थ और दशम भाव में आपसी संबंधी प्रॉपर्टी से सम्बंधित काम से फायदा देने वाला होता है।
लाभ भाव का सम्बन्ध भी ऐसे योग में बन जाने से प्रॉपर्टी के काम से जातक बहुत ही धन लाभ कमाता है।
चतुर्थ भाव पर पापग्रहों का प्रभाव मानसिक सुख में कमी करता है ऐसे जातक के पास सब कुछ होते हुए भी वह अपने आप को कमजोर और अकेला महसूस करते है एक तरह से आत्म विश्वास की कमी होती है।
इस भाव में चंद्र और शुक्र दिग्बल प्राप्त करते है।गुरु की युति या दृष्टि इस भाव पर होने से जातक बहुत ही भावुक स्वभाव और पवित्र मानसिक भावनाओ वाला होता है।
लाल किताब कुण्डली के चौथे घर को माता का घर कहा जाता है. इसका स्वामी और कारक ग्रह चंद्रमा है और इस घर को केन्द्र स्थानों में से एक माना जाता है. लाल किताब में इस केन्द्र स्थानों को बंद मुट्ठी का भाव कहा जाता है. इसे बंद मुट्ठी का भाव कहने से तात्पर्य य्ह भी है कि इस भाव से गर्भस्थ शिशु का विचार भी किया जाता है.
चौथे घर के ग्रह रात्रिबली होते हैं इन ग्रहों के कारोबार भी रात्रि के समय किए जाएं तो बहुत लाभदायक माने गए हैं. माना जाता है कि संकट के समय जब कोई भी ग्रह मददगार नहीं बनता तब उस स्थिति में चौथे घर के ग्रह सहायक बनते हैं.
चौथे घर में कर्क राशि की कल्पना की गई है. इस लिए चौथे घर में जो भी ग्रह स्थित होता है उसका प्रभाव चंद्रमा के समान होता है, लेकिन उक्त ग्रह का प्रभाव उस घर पर दिखाई देता है जहां शनि स्थित हो. अगर चौथे घर में कोई भी ग्रह नहीं हो तो वृद्धावस्था के समय तक उन्नति होती है. जब चौथे घर में कोई ग्रह नहीं हो तो दूसरा घर प्रबल हो जाता है
चौथे घर में शनि को अच्छा नहीं माना जाता है. यहां बैठा शनि सर्प की भांति प्रभाव देने वाला होगा. मंगल भी यहां जला हुआ बद या मंगलीक योग बनाने वाला बनता है.
लेकिन राहु और केतु के चौथे घर में होने पर वह धर्मात्मा ही रहेंगे. राहु केतु किसी दूसरे घर में मंदे कार्य छोड़ने का वचन नहीं देते. लेकिन यह घर उनके खराबी की बुनियाद भी है क्योंकि चौथे घर में बैठे हुए राहु-केतु चुप रहेंगे. यह भी स्वभाविक है कि उनके चुप रहने से लाभ के स्थान पर हानि भी संभवत: दिखाई दे सकती है. क्योंकि यह एक परेशानि के दबने की नहीं बल्कि बढ़ने का भी असर दर्शाता है.