कौन हैं बाबा खाटू श्याम जी, क्यों कहते हैं हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है परमधाम खाटू. यहां विराजित हैं खाटू श्यामजी यहां इनका बहुत ही प्राचीन मंदिर है. केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरी देश दुनिया से खाटू श्याम के भक्त यहां उनके दर्शनों के लिए आते हैं. यहां लगने वाला फाल्गुन मेला बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है जिसमें भक्तों की भीड़ उमड़ती है. खाटू श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है. कहते खाटू श्याम जी कभी अपने भक्तों को अकेला नहीं छोड़ते और जब भी भक्त जीवन की परिस्थितियों से हार मानते हैं खाटू श्याम जी उनका सहारा बन जाते हैं. 

कौन हैं खाटू श्याम जी
खाटू श्याम महाभारत के भीम के पोते हैं. भीम और हिडिम्बा के पुत्र हुए घटोत्कच. घटोत्कच और मोरवी के तीन बेटों में सबसे बड़े बेटे का नाम हुआ बर्बरीक. बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे. शिवजी की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये; इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से भी जाने गए. जब बर्बरीक को महाभारत के युद्ध का पता चला तो उन्होंने अपने धनुष बाण उठाकर युद्ध में जानें का निर्णय लिया. वह अपने छोटे दादा अर्जुन जैसे ही धनुर्धारी थे.

जब वह युद्ध भूमि की ओर जा रहे थे तो उनकी माँ ने उनसे वचन लिया कि जो पक्ष हारने लगेगा तुम उसकी तरफ से युद्ध करना. तुम हारे का सहारा बनना. माँ को वचन देकर वह अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन अमोघ बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े

बर्बरीक ने शीश कटने के बाद भी देखा महाभारत का युद्ध
अपनी माता को दिया वचन के अनुसार बर्बरीक हारने वाले पक्ष की तरफ से लड़ने लग जाते. श्री कृष्ण समझ गए कि ऐसे तो महाभारत का युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा. बर्बरीक किसी को नहीं हारने देंगे.तब श्री कृष्ण चिंतित हो गए और अर्जुन और श्री कृष्ण बर्बरीक वीरता का चमत्कार देखने के लिए वहां उपस्थित हुए। तब बर्बरीक ने कृष्ण भगवान की आज्ञा के अनुसार, एक ही तीर से सारे पत्ते छेद दिए थे। तब तीर एक एक करके सारे पत्ते छेदता जा रहा था। तब एक पत्ता टूटकर नीचे गिर गया। कृष्ण ने उसपर पैर रख लिया की ये बच जाएगा। लेकिन, तीर कृष्ण भगवान के पैर के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा कि प्रभु एक पत्ता आपके पैर का नीचे हैं मैंने तीर को सिर्फ पत्ते छेदने की आज्ञा दी थी। इसके बाद श्री कृष्ण चिंतित हो गए और फिर ब्राह्मण के वेश बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के पास पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा कि मांगों ब्राह्मण क्या चाहिए। कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गया और भगवान कृष्ण ने उसका शीश मांग लिया।बर्बरीक ने विनती की कि कोई साधारण ब्राह्मण उनका सिर दान में नहीं मांगेगा इसलिए अपना असली परिचय दें. श्रीकृष्ण अपने रूप में आ गए.

बर्बरीक ने उनसे कहा कि वह अंत तक महाभारत का युद्ध देखना चाहते हैं. श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि उनका कटा हुआ सिर सामने की पहाड़ी पर रख दिया जाएगा जहाँ से वह यह युद्ध देख सकेंगे. वीर बर्बरीक ख़ुशी के साथ अपना सिर काटने को तैयार हो गए और फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये. युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं। भगवान कृष्ण ने ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हे मेरे नाम श्याम के नाम से पूजा जाएगा. 

अपनी कलाएं एवं अपनी शक्तियां प्रदान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि, ‘‘बर्बरीक धरती पर तुम से बड़ा दानी न तो कोई हुआ है और न ही होगा। मां को दिए वचन के अनुसार, तुम हारने वाले का सहारा बनोगे। लोग तुम्हारे दरबार में आकर जो भी मांगें उन्हें मिलेगा।’’ इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया। बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण विराट शालिग्राम रूप में सम्वत् 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर कर रहे हैं।

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