दोस्तों हर सफल व्यक्ति की सफलता के पीछे उसका संघर्ष होता है, संघर्ष वह मार्ग है जो आपको सफलता की ओर ले जाता है, संघर्ष का मार्ग कठिन और लंबा जरूर हो सकता है लेकिन संघर्ष के मार्ग पर बने रहने से आपको जरूर सफलता मिलती है प्रेरणा और संघर्ष से भरी हुई कहानी विक्की रॉय की है वह विक्की राय की है जो आज देश के लाखों युवाओं के प्रेरणा है.
दोस्तों विक्की राय संघर्ष और सफलता की वह जीती जागती मिसाल है जो आपको बताती है कि कैसे सड़कों पर कचरा उठाने वाला लड़का, दूसरे का झूठा खाकर जीवन चलाने वाला , कैसे भारत के मशहूर फोटोग्राफरों में से एक बनता है.
विक्की रॉय का जन्म 1988 मैं पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हुआ था. विक्की राय का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, उनके पिता एक दर्जी थे जो कपड़े सील कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे, परिवार की आर्थिक स्थिति sahi नहीं होने के कारण अपने 6 संतानों के पालन पोषण में उन्हें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा . इसलिए उन्होंने सोचा कि विक्की को अपने नाना नानी के घर भेज दे ताकि उन्हें खाने और शिक्षा के लिए संघर्ष ना करना पड़े, अपने नाना नानी के घर पहुंचा दिए जाने के बाद भी उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया कि उन्हें अधिक तकलीफों का सामना करना पड़ा, विक्की रॉय बचपन से ही घूमने फिरने के शौकीन थे और अपना, अधिकांश समय बाहर बताना चाहते थे, परंतु नाना-नानी के घर उन्हें जबरदस्ती घर बैठा कर उनसे घर के काम करवाए जाते थे, ठीक से खाना नहीं दिया था और काम नहीं करने पर उनकी पिटाई की जाती थी.
अब तंग आकर उन्होंने सोच लिया कि अब वे इस घर में नहीं रहेंगे और कहीं और चले जाएंगे, सन 1999 मैं जब भी मात्र 11 वर्ष के थे तो उन्होंने अपने नाना नानी के घर से भागने का फैसला कर लिया, कहीं और जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे परंतु आपने नाना नानी के घर को छोड़ना चाहते थे इसलिए उन्होंने मजबूरन अपने मामा की जेब से तकरीबन ₹1000 चुराया और घर से भाग निकले.
अपने नाना नानी के घर छोड़ने के बाद विक्की सबसे पहले पुरुलिया स्टेशन पर पहुंचे जो एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है, स्टेशन पहुंचने के बाद भी समझ नहीं कहां जाए तब उन्होंने देखा कि दिल्ली जाने के लिए एक ट्रेन स्टेशन पर लगी हुई है, यह ट्रेन उनकी किस्मत बदलने वाली थी .
विकी रॉय ने वह ट्रेन पकड़ी और दिल्ली आ गए . दिल्ली स्टेशन पर पहुंचने के बाद एक 11 साल का वह लड़का एक ऐसी दुनिया में पहुंच चुका था जहां उसका कोई सगे संबंधी दोस्त रिश्तेदार नहीं थे जब वह स्टेशन से बाहर आए तो उन्होंने हजारों लोगों की भीड़ को देखा और हजारों गाड़ियों को देखा यह सब देख कर उसे 11 साल के लड़के को बहुत डर लगा कि कि वे इन हजारों की भीड़ में किसी को जानता नहीं था,
इसलिए डर के मारे वह रोने लगे और रोते रोते वापस प्लेटफार्म पर चले गए प्लेटफार्म पर उस छोटे लड़के को रोते देख कर वहां स्टेशन पर कुछ कचरा चुनने वाले लड़के जमा हो गए और विक्की को देखते ही समझ गए कि लड़का स्टेशन पर गुम हो गया या घर से भागकर आया है थोड़ी पूछताछ के बाद उन्होंने उन लड़कों को बताया अपने घर से भागकर दिल्ली आए हैं.
इसके बाद उन लड़कों ने खाना खिलाया वह खाना जो उन्हें ट्रेन के छोड़े गए यात्रियों से मिला था। उसके बाद वे लड़के विक्की को सलाम मुंबई की एक शेल्टर होम में ले कर छोड़ आए उस शेल्टर होम मैं उन्हें दो वक्त का खाना तो मिलता था पर उन्हें एक कैदी की तरह रहना पड़ता था क्योंकि शेल्टर होम के बच्चों को बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. विक्की राय को घूमने फिरने का शौक था वह एक कैदी की तरह नहीं रह सकते थे इसलिए उन्होंने वहां सिर्फ 1 दिन रहने के बाद उसे छोड़ दिया. शेल्टर होम छोड़ने के बाद वे फिर उसी रेलवे स्टेशन और कचरा चुनने वाले लड़कों के पास जा पहुंचे लड़कों के साथ कचरा चुनने का काम करने लगे.
अभी 11 साल के विक्की ने भी स्टेशन के अन्य बच्चों की तरह कचरा चुनने का काम शुरू किया वे रेलवे स्टेशन पर कचरा चुनते पर फेंकी गई खाली बोतलों को ठंडा पानी भरकर जनरल बोगी मैं ₹5 में बेच देते हैं विक्की बताते हैं कि यह उनके जीवन में सबसे कठिन समय में से एक था रेलवे स्टेशन पर विक्की का जीवन अत्यंत कठिन था उन्हें कई बार पुलिस से मार खानी पड़ती थी विक्की बताते हैं कि जब भी वह स्टेशन पर किसी यात्री का सामान चोरी होता तो उन्हें पुलिस और यात्री द्वारा काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था.
विक्की ने तकरीबन छे महीने रेलवे स्टेशन पर भिखारियों की तरह जीवन बिताया 6 महीने बाद उन्हें आभास हुआ कि इस तरह उनका जीवन नहीं चल सकता क्योंकि वह जो पैसे पानी की बोतलों को बेचकर कमाते व उनसे बड़े लड़कों द्वारा छीन ले जाते थे विकी ने पाया कि 6 महीने सब काम करने के बाद उनके पास कोई पैसे नहीं बचे तब उन्होंने सोचा कि वे कोई दूसरा काम करेंगे बहुत ढूंढने के बाद उन्हें एक ढाबे में बर्तन धोने का काम मिला जहां उन्हें सुबह 5:00 बजे से रात 12:00 बजे तक बर्तन धोने पड़ते थे विक्की राय बताते थे कि ठंड के दिनों में उन्हें सुबह 5:00 बजे उठा दिया जाता था और ठंडे पानी से देर रात तक बर्तन धोने का काम दिया जाता था बर्तन धोने से उनके हाथ की चमड़ी जगह-जगह फट गए थे और उन्हें बहुत दर्द होता था फिर भी उन्हें लगातार अपना काम करना पड़ता था.
एक दिन जब विक्की अपने ढाबे में काम कर रहे थे तब उस ढाबे में सलाम मुंबई का एक वालंटियर आया था ,जब उन्होंने छोटे विक्की को वहां काम करते हुए देखा तो उन्होंने कहां की है यह उम्र तुम्हारे पढ़ाई लिखाई की है यहां काम करने कि नहीं, इसके बाद वह युवक विक्की को अपने साथ सलाम मुंबई नामक एक ट्रस्ट में ले गया वहां उन्हें भर्ती कर दिया।
सलाम बालक ट्रस्ट की अपनी घर संस्था में रहने लग गया और कुछ दिनों के बाद 2000 में उनका छठी क्लास मैं दाखिला करवा दिया गया छठवीं कक्षा में विक्की का काफी अच्छे अंक आए और दसवीं की परीक्षा में उन्हें मात्र 48% अंक मिले , इसके बाद उन्हें टीचर ने उनको पढ़ाई छोड़ कर किसी और फील्ड में जाने की सलाह दी | ठीक है अपने टीचर की दी गई सलाह पर वह सोचने लगे कि अब मुझे क्या करना चाहिए तब उन्हें उस घटना की याद आए जब कुछ साल पहले ट्रस्ट में एक फोटोग्राफी वर्कशॉप मैं हुई थी और जिन लोगों ने इसमें अच्छी फोटो राशि की थी उन्हें इंडोनेशिया और श्रीलंका जाने को मिला था इन बातों को याद करके उन्होंने ठान लिया कि आप भी फोटोग्राफी करेंगे.
Vikki ने फोटोग्राफर बनने की बात अपने टीचर को बताइ तो तो उनके टीचर ने ₹500 रुपए का एक कैमरा दिया जिससे वे अपने दोस्तों और अपने रेलवे प्लेटफार्म की जीवन का फोटो खींचते थे.सन 2005 में विकी 18 साल के होगा तब एनजीओ के नियमों के अनुसार उन्हें एनजीओ को छोड़कर जाना पड़ा | एनजीओ निकलने के बाद उन्होंने दिल्ली की फोटोग्राफी ani ak मान जो forbes fortune magazine के लिए फोटोग्राफी करते थे उनके यहां असिस्टेंट के तौर पर नौकरी ज्वाइन कर ली जहां उन्हें ₹3000, बाइक और मोबाइल दी जाती थी. अपने मेंटर के पास असिस्टेंट की नौकरी करने के बाद vicky अधिकांश समय विदेशों में बीताता हुआ जो उन्हें काफी अच्छा लगता था.
2005 में vicky ने अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए सलाम बालक ट्रस्ट द्वारा लोन पर एक नया कैमरा खरीदा जिसमें उन्हें ₹500 किस्त चुकाना पड़ता था अपने मासिक आमदनी 3000 रुपए थे उसमें से ₹500 कैमरे की किस्त चुकाने के बाद उन्हें पास मात्र ढाई हजार रुपए बचते थे जिसमें उनको अपना गुजारा करना पड़ता था विक्की बताते हैं कि अपने कैमरे के रोल को खरीदने के लिए उन्हें शादी समारोह के लाइट उठाने वालों का काम करते थे थे ताकि वे अपने कैमरे के रोल खरीद सके.
डिक्सी बेंजामिन( जो एक प्रसिद्ध फोटोग्राफर) थे उनको जो उस समय का एक डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए सलाममुंबई trust में आए थे , डिक्सी बेंजामिन को जब vikki के बारे में पता चला कि यह लड़का फोटोग्राफर में interested है उन्होंने विक्की को फोटोग्राफी सिखाने का निर्णय ले लिया आप विक्की दिनभर दिनभर डिक्सी के tripod लेकर उनके साथ घूमते, उनसे फोटोग्राफी के गुर सीखे पर यहां पर विक्की को काफी परेशानी होती क्योंकि डिक्सी बेंजामिन एक ब्रिटिश थे और सिर्फ अंग्रेजी में परेशानी होती थी 1 दिन विक्की नहीं किसी दूसरे व्यक्ति से डिक्सी से पूछने को कहा कि मेरी अंग्रेजी अच्छी है कि नहीं इसलिए मैं एक अच्छा फोटोग्राफर नहीं बन सकता जब डिक्शनरी विकी का हौसला -+
बढ़ाते हुए कहा कि ऐसे बहुत सारे लोग जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती फिर भी बहुत अच्छे फोटोग्राफर है यह बात सुनने के बाद विक्की का हौसला काफी बढ़िया सन 2004 में जब श्रीलंका में सुनामी आज तक डिक्सी वहां मदद और फोटोग्राफी करने के लिए भारत छोड़ श्रीलंका चले गए.
अपने संघर्ष मेहनत के दम पर विक्की ने 2007 में पहली बार एक्सहिबिशन लगाया जिसका नाम स्वीट ड्रीम्स था इसमें उन्होंने अपने संघर्ष में दिनों को दिखाया कि कैसे एक सरल और रेलवे प्लेटफार्म पर संघर्ष करते हो बचपन के जीवन को दिखायाविकी के इस एक्सहिबिशन को लोगों ने काफी पसंद किया यह एक्सहिबिशन को तीन बार लंदन में तथा साउथ श्रीलंका और वियतनाम में भी काफी सफलता मिली यहीं से विक्की की सफलता की शुरुआत हुआ अब रेलवे प्लेटफार्म पर कचरा चुनने वाले लड़का एक सफल फोटोग्राफर बन गया.
विक्की की सफलता की यह तो शुरुआत भर रही थी इसके बाद विक्की को अमेरिका के न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड को पुनर्निर्माण के फोटोग्राफी के लिए चुना गया विक्की के जीवन के सबसे अच्छे पलों में से वह पल था, जब उन्हें अपनी फोटोग्राफी लिए विख्यात बर्मिंघम पैलेस मैं डिनर के लिए आमंत्रित किया था उनकी फोटोग्राफी को देखकर ब्रिटेन के प्रिंस एडवर्ट ने खुद उन्हें अपने महल में आमंत्रित किया था 2010 में अपनी फोटोग्राफी के लिए विक्की को बहरीन लेडीस इंडियन एसोसिएशन ने यंग अचीवर from इंडिया से सम्मानित किया।
सन 2013 में उन्हें नेट जिओ मिशन की कवर सूट के लिए चुना गया इस चुनाव में भारत से सिर्फ आठ फोटोग्राफर को इसमें विक्की एक थे नेट जिओ सूट shoot से लौटने के बाद साल 2013 में उनकी पहली पुस्तक होम स्टेट बुक छपी, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया लंदन के वाइट चैपल गैलरी और स्विट्जरलैंड के फोटो museum जैसी जगह पर उनकी फोटोग्राफी ने सब से खूब तारीफ बटोरी विक्की अब देश के साथ दुनिया के नामचीन फोटोग्राफर मे शुमार हो चुके हैं.
vikki roy का जीवन संघर्ष और सफलता की जीती जागती मिसाल है, vicky roy की जिंदगी देश के उन हजारों बच्चों के लिए प्रेरणा है जो अपना जिंदगी गरीबी और अभाव के कारण सड़कों पर काट देते हैं विक्की रॉय जो कभी सड़कों पर कचरा चुना करता था , ढाबे में बर्तन धोता था आज अंतरराष्ट्रीय स्तर का मशहूर फोटोग्राफर बन गया जो लड़का ट्रेन में यात्रियों के जूthe छोड़े गए भोजन से अपना पेट भरता था आज उसी लड़के को ब्रिटेन के राजा ने अपने घर डिनर के लिए बुलाते हैं लोग कहेंगे कि यह किस्मत की बात है पर मुझे नहीं लगता कि यह किस्मत की बात है विक्की रॉय की सफलता के पीछे उसकी किस्मत के अलावा उसके संघर्ष है जिसके कारण हुए आज यहां तक पहुंच सके दोस्तों किस्मत आपको मौका जरूर देती है और बार-बार देती है बस जरूरत है इस मौके को पहचानने की.