वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में नवम भाव व्यक्ति के भाग्य को दर्शाता है और इसलिए इसे भाग्य का भाव कहा जाता है। जिस व्यक्ति का नवम भाव अच्छा होता है वह व्यक्ति भाग्यवान होता है। इसके साथ ही नवम भाव से व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण का पता चलता है।
गुरू नवम स्थान का स्वामी ग्रह माना जाता है।
नवम भाव को राज्यकृपा का भाव भी कहते हैं। यदि इस भाव का स्वामी राजकीय ग्रह सूर्य, चन्द्र अथवा गुरु हो और बलवान भी हो तो मनुष्य को राज्य(सरकार आदि) की ओर से विशेष कृपा प्राप्त होती है
जिस व्यक्ति का नवम भाव अच्छा होता है वह व्यक्ति भाग्यवान होता है। इसके साथ ही नवम भाव से व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण का पता चलता है। अतः इसे धर्म का भाव भी कहते हैं। इस भाव से व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन का विचार किया जाता है। यह भाव जातकों के लिए बहुत ही शुभ होता है। इस भाव के अच्छा होने से जातक हर क्षेत्र में तरक्की करता है। पूर्व भाग्य, पूजा, धर्म, जप, दैव्य उपासना, भाग्य आदि को नवम भाव से दर्शाया जाता है। नवम भाव के स्वामी का अन्य भावों से संबंध कुछ विशेष प्रकार के राजयोगों का निर्माण भी करता है, आइये जानते हैं ये राजयोग कब और कैसे बनते हैं।
प्रभुकृपा का स्थान भी नवम भाव है। क्योंकि यह धर्म स्थान है और प्रभुकृपा के पात्र पुण्य कमाने वाले धार्मिक व्यक्ति ही हुआ करते हैं। इस भाव का स्वामी बलवान हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होकर जिस शुभ भाव में स्थित हो जाता है, मनुष्य को अचानक प्रभुकृपा व दैवयोग से उसी भाव द्वारा निर्दिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है। जैसे नवमेश बलवान होकर दशम भाव में हो तो राज्य प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन व घर की प्राप्ति, द्वितीय भाव में हो तो अचानक धन की प्राप्ति होती है।
राजयोग- पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है। इस भाव के स्वामी का संबंध यदि दशम भाव व दशमेश के साथ हो तो मनुष्य अतीव भाग्यशाली, धनी, तथा राजयोग भोगने वाला होता है। इसका कारण यह है कि दशम भाव केंद्र भावों में से सबसे प्रमुख तथा शक्तिशाली केंद्र है। यह एक विष्णु स्थान भी है।
इसी प्रकार नवम भाव त्रिकोण भावों में सबसे प्रमुख व शक्तिशाली त्रिकोण है तथा यह एक लक्ष्मी स्थान है। क्योंकि भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रिय है इसलिए नवम भाव व नवमेश का संबंध दशम भाव तथा दशमेश से होना सर्वाधिक शुभ माना जाता है। इस प्रकार नवम व दशम भाव का परस्पर संबंध राजयोग को जन्म देता है।
नौवां घर यात्रा और लंबी दूरी की यात्राओं से भी जुड़ा है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में नौवां घर मजबूत है, उन्हें यात्रा करने और नई जगहों की खोज करने में आनंद आएगा। वे विदेशी देशों की यात्रा करने और विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने की इच्छा रख सकते हैं। हालांकि, यदि नौवां घर कमजोर या पीड़ित है, तो व्यक्ति को यात्रा करने में रुचि नहीं हो सकती है।यात्रा करने की कोशिश करते समय उन्हें बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
नवम भाव उच्च शिक्षा, उच्च विचार और उच्च ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। नौवां भाव अनुसंधान, आविष्कार, खोज, अन्वेषण आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
कैसे दूर करें भाग्य की बाधाएं?
1. सबसे पहले देखें कि आपकी कुंडली के नवम भाव में कौन सा ग्रह है, उस ग्रह की मजबूती और प्रसन्न्ता के उपाय करने से भाग्योदय की बाधा दूर होती है।
2. नवम भाव में बैठे ग्रह यदि शुभ हैं, जैसे सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र हो तो ये शुभ है। अशुभ ग्रहों मंगल, शनि, राहु, केतु हो तो इनके उपाय बिलकुल ना करें।
3. रूद्राक्ष की माला से प्रतिदिन ठीक सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुंह करके सूर्य की उपस्थिति में गायत्री मंत्र का जाप करने से भाग्य प्रबल होता है।
4. रोज सुबह उठकर माता-पिता, घर के बुजुर्ग, गुरु के चरण स्पर्श करने से भाग्योदय शीघ्र होता है।
5. वृद्धाश्रम, दिव्यांग होम, अनाथालय में समय-समय पर खाने की वस्तुएं, कपड़े दान करते रहें। कोशिश करें कि सूर्यास्त के बाद ना तो किसी से उधार लें और ना उधार दें।
लाल किताब के अनुसार नवम भाव
लाल किताब के अनुसार, यह भाव पिता, दादा, भाग्य, धर्म, कर्म, घर का फर्श, परिवार के बड़े व्यक्ति, पुराने घर से प्राप्त धन या विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली के नवम भाव के द्वारा जीवन में समृद्धि और खुशहाली को भी देखा जाता है। यदि तीसरे और पांचवें भाव में कोई ग्रह नहीं है तो इस भाव पर स्थित ग्रह निष्क्रिय रहेंगे। पांचवें भाव में ग्रह की उपस्थिति इस भाव के घरों को सक्रिय बनाती है।
इस प्रकार आप देख सकते हैं कि नवम भाव सभी भावों में कितना प्रमुख है। इस भाव से आपका भाग्य और जीवन में प्राप्त होने वाले लाभांश को देखा जाता है। यह ध्यान रखने वाली बात है कि कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत से ज्यादा और समय से पहले कुछ भी प्राप्त नहीं करता है।
यदि नवें भाव पर राहु-केतु का प्रभाव हो तो 42वें और 44वें वर्ष में उस व्यक्ति का भाग्योदय होता है।