आइये जाने चन्द्र ग्रह के गुण, प्रभाव और परिणाम

हमारा वैदिक ज्योतिष नौ ग्रहों और 27 नक्षत्रों पर आधारित है । किसी व्यक्ति का अगर राशिफल जानना हो या जन्म कुंडली बनानी हो तो इसके लिए व्यक्ति की चंद्र राशि को ही आधार माना जाता है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है, वह जातकों की चंद्र राशि कहलाती है। चंद्रमा हमारे नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा ग्रह है। इसका आकार ग्रहों में सबसे छोटा है परंतु इसकी गति सबसे तेज़ होती है। चंद्रमा के गोचर की अवधि सबसे कम होती है। यह लगभग सवा दो दिनों में एक राशि से दूसरी राशि में संचरण करता है।

चंद्रमा पृथ्वी की पूरी परिक्रमा 27.3 दिनों में करता है और 360 डिग्री की इस परिक्रमा के दौरान सितारों के 27 समूहों के बीच से गुजरता है। चंद्रमा और सितारों के समूहों के इसी तालमेल और संयोग को नक्षत्र कहा जाता है। जिन 27 सितारों के समूह के बीच से चंद्रमा गुजरता है वही अलग-अलग 27 नक्षत्र के नाम से जाने जाते हैं। किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होगा या सितारों के जिस समूह से होकर गुजर रहा होगा, वही उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है और यही आपकी किस्मत की चाबी होती है।
पुराणों में चन्द्रमा को देवतुल्य स्थान प्राप्त हैं। समुद्रमंथन के समय जो 14 रत्न निकले थे उनमें चन्द्रमा भी एक हैं जिसे भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर विराजमान कर लिया था। भगवान शंकर ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर एक विशेष कारण से धारण किया था। जब वे समुद्रमंथन से निकला विष पी गए तो सभी ओर त्राहिमान की स्थिति निर्मित हो गई स्वयं भगवान शंकर को भी विष की तीव्र गर्मी महसूस हुई, तब उन्होंने शीतलता दायक चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया जिसकी शीतलदायक किरणों से विष

की गर्मी दूर हुई।

पुराणों में ही एक दूसरी कथा का भी उल्लेख मिलता इसके अनुसार चन्द्रमा को अत्रि मुनि का वंशज कहा जात हैं। अत्रि पत्नी अनुसूया के तप के कारण अनुसूया परीक्षा ली गई इसके लिये ब्रह्मा, विष्णु और महेश को नवजात शिशुओं के रूप में परिवर्तित कर दिया गया जब सती अनुसूया ने उनकी वास्तविक काया दी तो उन्हों स्वयं अपने अंश से तीन संतानों के रूप में अनुसूया के गर्भ से जन्म लिया। इन तीन पत्रों में ब्रह्मा के अंश से सोम (चंद्रमा) की, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय प्रभु की एवं शिव के अंश से दुर्वासा मुनि की उत्पत्ति हुई थी।

4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह हैं। इसकी धरती से औसत दूरी तीन लाख चौरासी हजार सौ (384100) किलोमीटर है। इसका व्यास तीन हजार चार सौ छियोत्तर (3476) किलोमीटर है ।
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन, मस्तिष्क, बुद्धिमता, स्वभाव, माता, यात्रा, सुख-शांति, धन-संपत्ति, रक्त, बायीं आंख, छाती आदि का कारक माना जाता है। ज्योतिष में चंद्र ग्रह को स्त्री ग्रह भी कहा गया है। यह राशियों में कर्क राशि का और नक्षत्रों में रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र का स्वामी होता है। यह एक शुभ ग्रह है। यह सौम्य और शीतल प्रकृति को धारण करता है।

चंद्रमा व्यक्ति की भावनाओं पर नियंत्रण रखता है। यह जल तत्व ग्रह है। सभी तरल पदार्थ चंद्र के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। चंद्रमा ही है जो फुल मून नाइट यानी पूर्णिमा में समुद्र में ज्वार भाटा पैदा कर देता है और हमारे ह्यूमन बॉडी में उनसे ज्यादा पानी है इसलिए यह हमारी भावनाओं को भी प्रभावित करता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मन का आधिपत्य चंद्रमा के पास है इसलिए जब भी चंद्रमा बिगड़ जाता है तो मन भी खराब हो जाता है। यही नहीं अगर चंद्रमा कमजोर हो जाए तो कुंडली में बने राजयोग फलित नहीं हो पाते हैं। कमजोर चंद्रमा सबसे पहले अपना असर व्यक्ति के स्वभाव पर डालता है। कई बार व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को लेकर परेशान हो जाता है। चंद्रमा की स्थिति व्यक्ति के मन, स्वास्थ्य, उन्नति को प्रभावित करती है। चंद्रमा जीवन में रस घोलता है। चंद्रमा ही शरीर के भीतर का जल है। रक्तचाप को नियंत्रित करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका चंद्रमा ही निभाता है।

जिस प्रकार कुंडली, लग्न को केंद्र मान कर बनाई जाती है, उसी प्रकार चंद्रमा को केंद्र मानकर चंद्र कुंडली भी बनाई जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि चंद्रमा हम लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कलियुग में मन ही राज कर रहा है, आत्मा पर मन का अधिक प्रभाव हो रहा है। कुंडली में अगर चंद्रमा शुभ स्थिति में होता है या मजबूत होता है तो यह व्यक्ति को जीवन के सारे रस प्रदान करता है और उसकी जिंदगी को खुशगवार बना देता है। चंद्रमा की अपनी राशि कर्क राशि है। चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च का होता है और वृश्चिक राशि में नीच का हो जाता है।

उच्च का चंद्रमा हमेशा हमारे मन को प्रसन्न रखता है। विपरीत परिस्थितियों में भी यह मन को दुखी नहीं होने देते हैं। वहीं अगर उच्च के चंद्रमा पर देवगुरू बृहस्पति की दृष्टि पड़ जाए तो चंद्रमा और बलवान हो जाता है और इससे बहुत ही शुभ माना जाने वाला गजकेसरी योग भी बन जाता है। उच्च के चंद्रमा वाला व्यक्ति हमेशा संगत बहुत उच्च कोटि की रखता है। प्लानिंग एवं कल्पना करने वालों के लिए मून का मजबूत होना बहुत ही आवश्यक होता है। सरकारी बड़े पदों पर बैठे व्यक्तियों का यदि चंद्रमा मजबूत हो तो उनकी प्रतिभा और निखर कर प्रदर्शित होती है। उच्च का चंद्रमा हमें बहुत कल्पनाशील भी बनाता है और हमें बहुत क्रिएटिव भी बनाता है।

जब चंद्रमा निर्बल और खराब स्थिति में होता है तो व्यक्ति के कॉन्फिडेंस लेवल को बहुत कम कर देता है। उस व्यक्ति को बहुत घबराहट और बेचैनी होने लगती है। उसका मूड स्विंग करने लगता है। कई बार उसके अंदर की भावना आ जाती है या फिर उसके भीतर आपराधिक विचार आने लगते हैं। इसके अतिरिक्त मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं रहता है। विश्वसनीयता में कमी आने लगती है। चंद्रमा कमजोर होने पर व्यक्ति कोई भी काम बहुत मन से नहीं कर पाता है, उसका मन बहुत जल्दी ही किसी काम से उचट जाता है। वह दिल से भी कमजोर होता है। समस्या आने पर वह जल्द ही घबरा जाता है।

चंद्रमा का बल कम होने से व्यक्ति कोल्ड और कफ संबंधी रोग से प्रायः ग्रसित रहता है। चंद्रमा निर्मल, ठंडा एवं कल्पनाशील होता है, जब भी इन सब कारको को दूषित या निर्बल करने वाले क्रूर पापा ग्रह का प्रभाव चंद्रमा पर पड़ता है तो चंद्रमा कमजोर हो जाता है।

चंद्रमा को शनि व राहु की दृष्टि या युति भी बहुत प्रभावित करती है। चंद्रमा अगर राहु के साथ हो जाए तो व्यक्ति की संगत बिगड़ सकती है। राहु विष देने वाला ग्रह है, जिसकी वजह से चंद्रमा पर इसका कुप्रभाव पड़ता है। चंद्रमा शीतल होता है। चंद्र और राहु की युति ग्रहण योग भी बनाती है। जिसकी वजह से रक्त चाप संबंधी रोग भी हो सकता है। चंद्रमा के विषाक्त होने पर व्यक्ति व्यसनों में जल्दी फंस सकता है। व्यसनों को छोड़ना असंभव सा हो जाता है। वहीं यह युति अलग-अलग भावों में अपने अलग-अलग फल देती है। इसी तरह शनि और चंद्रमा का कुंडली में बना कंबीनेशन भी विष योग बना देता है और चंद्रमा पीड़ित हो जाता है।

चंद्रमा को बलवान करने के लिए मोती रत्न धारण किया जा सकता है। कर्क लग्न या राशि वालों के लिए मोती बहुत ही शुभकारी होता है। इसके अलावा चांदी के बर्तनों का भी प्रयोग किया जा सकता है। छोटे बच्चों को अगर शीत रोग अधिक होते हो तो उन्हें मामा के द्वारा चांदी का चंद्रमा और चांदी की कटोरी चम्मच देनी चाहिए। वृश्चिक, मीन, मकर. सिंह वालों को मोती रत्न ज्योतिष की सलाह पर ही धारण करना चाहिए।

चंद्रमा को मजबूत करने के लिए हमेशा घर में चांदी की एक छोटी सी प्लेट पूजा स्थल पर रखें। घर में कहीं भी गन्दा पानी या कीचड़ न होने दें। पानी के सड़ने से चन्द्रमा रुष्ट होता है।

चावल, दूध, चांदी, मोती, दही, मिश्री, श्वेत वस्त्र, श्वेत फूल या चन्दन इन वस्तुओं का दान सोमवार के दिन सायंकाल में करना चाहिए।

चंद्र की शुभता लेने के लिए माता, नानी, दादी, सास एवं इनके पद के समान वाली स्त्रियों का आशीर्वाद लें।

पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर का भोग लगाएं

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